शंकर जयकिसन के संगीत में अनोखा वैविध्य है

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शंकर जयकिसन के संगीत की बात करें तब एक खास बात हमारे ध्यान में आती है. वह यह की इन दोनों को किसी खास शैली का मुहर नहीं लगा सकते. जैसे कि मास्टर गुलाम हैदर और ओ पी नय्यर पंजाबी शैली का संगीत लाए, नौशाद अली उत्तर भारत के लोकसंगीत को फिल्मों में लाये, बांग्ला, भटियाली और ईशान भारत का लोकसंगीत एस डी बर्मन लेके आये... इस तरह के क्लासीफिकेशन में शंकर जयकिसन को कहीं भी नहीं रख सकते. 

शंकर जयकिसनने भारत के विविध प्रदेशों के लोकसंगीत, शास्त्रीय संगीत, उपशास्त्रीय संगीत ( ठुमरी, दादरा, चैती, होरी, इत्यादि), नाट्य संगीत, प्रासंगिक संगीत (जैसे कि लोरी, राखी गीत), योरोपीय शैली का संगीत और पूर्व-पश्चिम के संगीत का समन्वय अर्थात् फ्युझन संगीत- इन सभी का यथोचित और कलात्मक विनियोग कर के दिखाया. योरोपीय संगीत के विविध स्वरूप जैसे कि पोप, जाझ, वोल्ट्झ इत्यादि प्रकारों का भी खूबीपूर्वक उपयोग किया. 

इन सभी प्रकारों का इस्तेमाल करते समय उन्हों ने एक ही बात अपने सामने रखी थी. और वह यह कि तर्ज सरल और आम आदमी आसानी से गा सके ऐसी रहे. कभीकभार भारतीय संगीत के राग में पाश्चात्य वाद्य मिला के कुछ ऐसा नवीनतम संगीत प्रस्तुत किया जिस का अति विकसित स्वरूप बाद में आर डी बर्मन (पंचम) और आज के ए आर रहमान जैसे संगीतकारो में नजर आता है. इन की हर बंदिश मधुरता से भरपुर थी. गीत चाहे शास्त्रीय राग आधारित हो या पाश्चात्य शैली का हो, इन के हरेक गीत मधुर और यादगार बने.

यहां और एक कलाकार से इन की तुलना कर सकते हैं. मुहम्मद रफी जिस अभिनेता के लिये गाते थे, उस कलाकार की बोलने चलने की ढब देखकर अपनी आवाज को उस कलाकार जैसी आवाज में प्रस्तुत करते थे.  शंकर जयकिसन भी जिस कलाकार के लिये फिल्मों में संगीत देते थे उस कलाकार की इमेज और फिल्म् की जरूरत के हिसाब से संगीत परोसते थे.

एक द्रष्टांत लेते हैं. आप जानते हैं कि देव आनंद के लिये एस डी बर्मन ज्यादा काम करते थे. लेकिन  देव आनंद अभिनित जब प्यार किसी से होता है या लव मैरेज जैसी फिल्मों का संगीत सुनिये. मेरी बात आप समज जायेंगे. देव आनंद की जो इमेज थी, उन को जिस प्रकार का संगीत पसंद था, शंकर जयकिसन ने ठीक उसी तरह का संगीत दिया.  

राजिन्दर कुमार की दिल एक मंदिर या आई मिलन की बेला देखिये, मनोज कुमार की हरियाली और रास्ता देखिये, डायलोग्स के बेताज बादशाह राज कुमार और जितेन्द्र की मेरे हुजूर देखिये या दिलीप कुमार की दाग और यहूदी देखिये. आप अपने आप समज जायेंगे कि मैं क्या कहना चाहता हुं. हरेक कलाकार की पसंदीदा संगीत इन दोनों ने इतनी अच्छी तरह दिया कि प्रत्येक कलाकार खुश हुए.  

संगीत परोसने की इन दोनों की खूबी ऐसी थी कि गीत सुनते ही पता चलता था कि यह गीत किस कलाकार के लिये बनाया गया है. यहां शम्मी कपूर का नाम जान बूझकर नहीं लिया है क्यूं कि कपूर खानदान के साथ इन दोनों का झुकाव अलग था. कपूर खानदान के साथ इन का पुराना और पारिवारिक रिश्ता था. 



कभीकभार यह दोनों ऐसा तजुर्बा करते थे जो काबिल-ए-दाद बन जाये. मिसाल के तौर पर यह किस्सा पढिये. होलिवूड की नॉक ओन ध वूड फिल्म का हिन्दी रूपांतर बेगुनाह नाम की फिल्म में हुआ था. इस फिल्म में शंकर जयकिसन ने किशोर कुमार के लिये मन्ना डे की आवाज पसंद की थी. खुद मन्ना डे अचंभित हुए थे कि जब किशोर कुमार इतना अच्छा और नटखट गायक है तो उन के लिये मेरी आवाज क्यूं पसंद की गयी है. दिन अलबेले, प्यार का मौसम, चंचल  मन में तूफां, ऐसे में कर लो प्यार... यह गीत मन्ना डेने किशोर कुमार के लिये गाया और हिट भी हुआ. यह थी उन दोनों की प्रयोगशीलता.

अपने बचपन में वांसदा गांव में एक लोकगीत जयकिसन ने सुना था. फिल्मों में अवसर प्राप्त हुआ तब उस लोकगीत के आधार पर नई दिल्ही फिल्म में एक यादगार गीत दिया- मुरली बैरन भयी रे कन्हैया तोरी मुरली बैरन भयी...

और एक खास बात. शंकर जयकिसन ने नये निर्माता निर्देशकों की फिल्मों में हिट संगीत परोसकर उन सभी को फिल्म सृष्टि में स्थायी होने में सहाय की थी. जैसे कि अमिया चक्रवर्ती को दाग में संगीत परोसा, किशोर साहु को काली घटा  में साथ दिया, सुबोध मुखरजी को लव मैरेज में साथ दिया. किसी के साथ सिर्फ एक फिल्म की तो किसी के साथ ढेर सारी फिल्में की. फिल्म सर्जक बहुत नामी हो या नया हो, साऊथ का हो या मुंबई का, इन्हों ने कभी अपने काम में दिलचोरी या कामचोरी नहीं की. संपूर्ण समर्पितता के साथ शंकर जयकिसन काम करते रहे. अब उन के संगीत के बारे में बात करेंगे.


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