शंकर जयकिसन-16
शंकर जयकिसन का फिल्म संगीत में उदय हुआ तब छः गायिकाएं प्रमुख पार्श्वगायिका मानी जाती थी. वे थी गीता दत्त, शमसाद बेगम, जोहराबाई अंबालेवाली, गायिका अभिनेत्री राजकुमारी, अमीरबाई कर्णाटकी और अभिनेत्री गायिका सुरैया. जैसे कि पहले कह चूका हुं गायिका अभिनेत्री नूरजहां, खुर्शीद आदि बंटवारे के बाद पाकिस्तान जा चूकी थी.
शंकर जयकिसन ने किसी भी समकालीन गायिका का अनादर नहीं किया लेकिन नये ऊभरते गायकों को अवसर दिया और नयी पीढी के कलाकारों को संगीत रसिकों के सामने प्रस्तुत किये. बरसात और आवारा के बाद बादल और काली घटा के संगीत को ध्यान में रखें तो इन दोनों फिल्मों के गीतों में लताजी छा गये ऐसा कह सकते हैं. शास्त्रीय संगीत से मंजा हुआ, ताजगीपूर्ण और तीनों सप्तक में आसानी से गाने की लताजी की क्षमता का इन दोनों ने पूरा फायदा उठाया.
बादल फिल्म की कथा में योरोप के रोबिनहूड का प्रभाव था. श्रीमंतों को लूटकर गरीबों को सहाय करनेवाले इस लोकनायक की भूमिका प्रेमनाथ ने अदा की थी. मधुबाला राजकुमारी के रोल में थी. हमारा कथानायक और राजकुमारी एकदूसरे को मुहब्बत करते हैं ऐसी बात कथा में जोड दी गयी थी. अमिया चक्रवर्ती की इस फिल्म में आठमेंसे छः गीत लताजीने गाये थे. बाकी रहे दो गीतों में एक मूकेश का सोलो (एकलगीत ) था और एक गीत मूकेश और लता का युगलगीत था. मूकेश के गाये गीत मैं राही भटकनेवाला हुं काफी लोकप्रिय हुआ था. आज भी लोकप्रिय है.
इस गीत की तर्ज पर बहुत सारे भक्तिगीत विविध प्रादेशिक भाषाओं में रचे गये थे और मंदिरों में बडे ही चाव से गाये जाते थे. प्रेमनाथ के कमजोर अभिनय को मूकेश के कंठने सम्हाल लिया था ऐसी समीक्षा मिडिया में प्रकाशित हुयी थी. मूकेश के प्रेमीओं के संग्रह में यह गीत आज भी है और रहेगा.
पहले भी कह चूका हुं, यहां फिर से कह रहा हुं. शंकर जयकिसन की भैरवी का और एक मनोहर स्वरूप इस फिल्म के एक गीत में हम महसूस कर सकते हैं. वह भैरवी याने यह गीत- इस गीत को लताजी ने गाया है. दो दिल के लिये महेमान य़हां, मालूम नहीं मंजिल है कहां, अरमान भरा दिल तो है मगर, जो दिल से मिले वह दिल है कहां... गीत के शब्द औऱ तर्ज के स्वर दूग्धशर्करा जैसे एक हो गये हैं. यह गीत परदे पर मुधुबाला ने प्रस्तुत किया था और इसे काफी पसंद किया गया था. शैलेन्द्र के शब्दों में जितनी सादगी थी इतनी ही सादगी तर्ज और लय में भी थी. ऐसे गीतों ने साबित कर दिया था कि राज कपूर की अनुपस्थिति में भी शंकर जयकिसन हिट संगीत दे सकते हैं.
काली घटा किशोर साहु की फिल्म सर्जक के रूप में पहली फिल्म थी. उन को फिल्म सर्जक के रूप में स्थायी होने में शंकर जयकिसन के संगीत ने बहुत सहाय की थी. इस फिल्म में दो अभिनेत्री थी- बीना राय और आशा माथुर. बादल की तरह यहां भी लताजी छा गये हैं.
छः गीतों में पांच गीत लता ने गाये थे. एक गीत लता और मुहम्मद रफी का युगलगीत था. लता के गाये एक गीत में एकोक्ति (सोलीलोक्वी ) जैसा प्रभाव है. वह गीत याने हम से ना पूछो कोई प्यार क्या है, पूछो बहार से, हंस हंस के दिल देने में, जीत क्या है, हार क्या है... और एक गीत यहां लता ने नूरजहां की शैली में प्रस्तुत किया है, वह है उन के सितम ने लूट लिया... कारकिर्द के आरंभ में लताजी नूरजहां की शैली में गाते थे. बाद में अपनी अलग शैली और स्वरलगाव स्थापित किये.
यहां एक बात ध्यान में आती है. गायिका के रूप में लताजी को स्थापित करने में शंकर जयकिसन ने बहुत बडा प्रदान किया और संगीतकार के रूप में शंकर जयकिसन को सुद्रढ करने में लताजीने महत्त्वपूर्ण प्रदान किया. लता और शंकर जयकिसन दोनों एकदूसरे के लिये पूरक (सप्लीमेन्टरी) बने रहे.
आप हिंदी में भी लिखते है, यह तो मालूम ही नहीं था... बहुत अच्छे...
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