सहगल की स्मृति को जीवंत रखने का प्रयास

 शंकर जयकिसन-16



राज कपूर से बाहर की फिल्मों में संगीत परोसने की परमिशन मिली उन दिनों शंकर जयकिसन को दलसुख पंचोली की एक फिल्म मिली. लाहौर से आये यह दलसुख पंचोली अर्थात् संगीतकार ओ पी नय्यर और खलनायक प्राण को फिल्मों में लानेवाले महारथी.

1947 में देश को स्वतंत्रता मिली और बंटवारा हुआ तब हिन्दी फिल्मोद्योग को काफी भुगतना पडा. एक तो यह कि गायिका अभिनेत्री नुरजहां ने पाकिस्तान में बसने का निर्णय किया. दूसरी और गहरा सदमा पहुंचाने वाली बात यह कि अमर गायक अभिनेता कुंदन लाल सहगल छोटी सी उम्र में ही दिवंगत हो गये.

1947 के जनवरी की 18 तारीख को सहगल चल बसे. यह उन दिनों की बात है कि पंचोली ने शंकर जयकिसन को अपनी फिल्म की जिम्मेदारी सोंपी. फिल्म थी नगीना. सहगल के निधन की याद लोगों के दिल में अभी ताजी थी. शंकर जयकिसन ने सोचा कि क्यूं न सहगल की स्मृति को जीवंत रखें. उन्हों ने एक ऐसी आवाज ढूंढी जो सहगल की आवाज से काफी मिलती थी. यह उन की प्रयोगशीलता का प्रथम नमूना था. नगीना में इन दोनों ने और भी एक आजमायीश की.    

सहगल जैसी आवाज और गायनशैली सी एच आत्मा की थी. ईत्तेफाक देखिये, सी एच आत्मा अर्थात् चैनानी हसमत राय आत्मा के कंठ को सब से पहले ओ पी नय्यरने आजमाया था. सी एच आत्मा ने ओ पी नय्यर के संगीत में एक यादगार गीत गाया था- प्रीतम आ न मिलो... शंकर जयकिसन ने सी एच आत्मा की आवाज में नगीना का गीत प्रस्तुत किया. यह बात अलग है कि वक्त बदल रहा था और धीरे धीरे मुहम्मद रफी, मूकेश, तलत महमूद आदि गायक का जमाना शुरु हो रहा था अतैव सी एच आत्मा को ढेर सारे अवसर प्राप्त नहीं हुए. मूकेश और किशोर कुमार भी उन दिनों सहगल की तरह गाने की कोशिश करते थे.

सहगल की तरह शंकर जयकिसन ने नगीना में और एक आजमायीश की. लताजी के अतिरिक्त शमसाद बेगम को भी याद किया और उन की आवाज में भी गाने रेकोर्ड किये. दूसरा प्रयोग मटके का लयवाद्य के रूप में आजमानेका था. इस फिल्म में शंकर जयकिसन ने तूने हाय मेरे जख्मे जिगर को छू लिया गीत में मटके का सुंदर प्रयोग किया. बलबीर सिंघ नाम के पृंजाबी साजिंदे ने यह मटका बजाया था.

देश स्वतंत्र होने के पश्चात् यह पहली ऐसी फिल्म थी जो पुख्त वय के दर्शकों के लिये बनी थी. सैन्सर बोर्डने इस फिल्म को ए सर्टिफिकेट दिया था. फिल्म के निर्माता-निर्देशक को इस बारे में कोइ आपत्ति नहीं थी. अगर थी तो उन्हों ने व्यक्त नहीं की थी. सैन्सर बोर्ड ने सोचा कि एक तो इम फिल्म का लोकेशन बच्चों को भयभीत करनेवाला भूतिया बंगला है और दूसरी बात इस फिल्म में अभिनेत्री नूतन ने पहली बार बिकिनी शोट दिया था. खुद नूतन को भी बच्ची समजकर थियेटर में यह फिल्म देखने का अवसर नहीं मिला. थियेटरवालों ने नूतन को प्रवेश नहीं दिया.  

नगीना में आठ गीत थे. तीन गीत सी एच आत्मा को मिले, तीन गीत लताजी को मिले. बाकी रहे दो. एक गीत लता और मुहम्मद रफी को मिला और अंतिम गीत रफी और शमसाद बेगम को मिला. यहां एक दिलचस्प बात कहुं. अंग्रेजी भाषा में एक लोकोक्ति है- अवर स्वीटेस्ट सोंग्स आर धोझ घेट टेल ऑफ सेडेस्ट थोट....( हिन्दी भाषा में इस का अनुवाद बाद में तलत के एक गीत में हुआ था, है सब से मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सूर में गाते हैं.) सी एच आत्मा का गाया हुआ दर्दभरा गीत रोउं मैं सागर किनारे... बहुत ही लोकप्रिय हुआ था. सहगल की शैली में प्रस्तुत किये गये सी एच आत्मा ने गाये तीनों गीत की अच्छी सराहना हुयी. दूसरे दो गीतों के मुखडे इस प्रकार थे- दिल बेकरार है... और इक सितारा आकाश में... 

लता के गाये हुए तीनों गीत भी पसंद किये गये. वे थे- याद आयी है, बेकसी छायी है..., तूने हाय मेरे जख्मे जिगर को छू लिया... और कैसी खुशी की है रात, बालम है मेरे साथ... लता और रफी का युगलगीत था हम से कोइ प्यार करो जी... रफी और शमसाद बेगम में गाया- ओ डियर, आओ नीअर...

यहां एक बात समज लेनी चाहिये. नगीना का संगीत बरसात और आवारा जैसा नहीं था. उस का एक कारण यह कि यहां राज कपूर नहीं थे. दूसरी बात यह की शंकर जयकिसन ने सहगल की स्मृति को जीवंत रखने का एक प्रयोग किया था. तीसरी बात यह के पुराने और नये गायकों को आजमाने का भी यह एक नमून था. सहगल और शमसाद, दूसरी और रफी और लता. इस तरह नगीना का संगीत तैयार हुआ. लेकिन नगीना का संगीत भी लोकप्रिय हुआ और शंकर जयकिसन ने अपनी प्रतिभा का परिचय दर्शकों को कराया.

यहां एक बात कहना चाहुंगा. प्रत्येक फिल्म के प्रत्येक गीत की बात हम नहीं करेंगे. अपितु शंकर जयकिसन की सर्जनशीलता और गीतों की विशेषता की बातें हम करेंगे. नगीना के बाद इन्हों ने काली घटा और बादल फिल्मों में संगीत परोसा. इन दोनों फिल्मों के संगीत का विहंगावलोकन कर के हम आगे बढेंगे.

               


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