शंकर जयकिसन
(गुजराती भाषा के प्रमुख दैनिक गुजरात समाचार की च्रित्रलोक पूरक में यह लेख 05-07-19 के दिन प्रकाशित हुआ था.)
1960 के दशक के
ऊत्तरार्ध में मद्रास रेडियो पर पार्श्वगायिका कविता कृष्णमूर्ति ने शास्त्रीय
गायक उस्ताद अमीर खान का साक्षात्कार प्रस्तुत किया था जिस की बात पिछले एपिसोड में हम कर रहे थै. शास्त्रीय
संगीत में खयाल और तराना गायकी के स्वरूप को नितांत बदल देनेवाले उस उस्तादजीने
शंकर जयकिसन की भूरि भूरि प्रशंसा की थी. आपने यहां तक कह दिया था कि इन दोनों
संगीतकारोंने एक प्रकार का अवतारी कार्य कर के दिखाया था अर्थात् दिव्य कार्य कर
के दिखाया है. ढाई तीन मिनट में एक राग को श्रोता की कल्पन द्रष्टि के समक्ष खडा
कर देना कोइ ऐसी वैसी उपलब्धि नहीं है ऐसा खान साहब कह रहे थे. अब हम आगे बढें.
पिछली बार जो
थोडे गाने के मुखडे दिये थे वे अगर आप ने यु ट्युब या गाना डॉट कोम पर सुन लिये
हैं तो आप को आज के एपिसोड मे अधिक आनंद आयेगा. और हां, यह मत भूलियेगा कि यह हरेक गीत छः मात्रा के दादरा ताल में
निबद्ध है. पति को केन्सर हुआ है और मेरा पूर्व प्रेमी डॉक्टर मेरे पति पर
शस्त्रक्रिया करनेवाला है वह मेरे पति को जीवनदान देगा भी या नहीं ऐसी दुविधा
में शस्त्रकिया की अगली रात को सितार के
स्वर छेडते हुए सीता (अभिनेत्री मीनाकुमारी ) गाती है, ‘ हम तेरे प्यार में सारा आलम को बैठे हैं, खो बैठें, तुम कहते हो कि ऐसे प्यार को भूल जाओ... (फिल्म दिल एक
मंदिर) उपशास्त्रीय शैली के गायनप्रकारो में अधिक लोकप्रिय ऐसे राग तिलक कामोद में
फिल्म दिल एक मंदिर का यह गीत स्वरबद्ध
हुआ है. (कतिपय विद्वान मानते हैं कि यह गीत राग देश में है. हमें विवादो में
दिलचस्पी नहीं है, अतैव आगे बढें ।
दिल एक मंदिर
फिल्म के ही और एक गीत को लीजिये. अपनी पूर्व प्रियतमा के पति को जीवनदान देते हुए
केन्सर विशेषज्ञ डॉक्टर अपनेआप का बलिदान दे देता है, अपनी जान दे देता है. कहानी की पराकाष्ठा का यह द्रश्य है.
जब डॉक्टर की प्रतिमा को डॉक्टर की माताजी पुष्पमाला पहनाने आती है और सीता अपने
पति राम के साथ माताजी को सहारा देती है. ऐसे संवेदनशील द्रश्य की पार्श्वभूमि में
गीत सुनाई देता है, ‘जानेवाले कभी
नहीं आते, जानेवाले की याद आती है,
दिल एक मंदिर है, प्यार की इस में होती है पूजा, यह प्रीतम का घर है... ’ राग जोगिया में निबद्ध यह गीत की विशेषता यह है कि फिल्म
संपन्न हो रही है, ऐसे में यह गीत
पार्श्वभूमि में बजता् है, अपितु एक भी
दर्शक अपनी बैठक छोडकर जा नहीं रहा है. गीत का प्रभाव हर एक दर्शक के दिल-ओ-दिमाग
पर ऐसा प्रभाव छोड रहा है कि सभागृह के बाहर नीकलते वक्त भी हर एक के दिल में यह
गीत गूंज रहा है.
यदि आप शास्त्रीय
संगीत के शॉकिन है तो किराना घराने के दिग्गज गवैये पंडित भीमसेन जोशीने इस राग
में गायी हुयी ठुमरी ‘पिया के मिलन की
आस...’ अवश्य सुनिये. आप की
आंखें छलक ऊठेगी. यह है राग जोगिया का प्रभाव. सुनते सुनते आप भी गमगीन हो
जायेंगे.
शंकर जयकिसन के
पसंदीदा जो दो तीन राग थे उस में एक था शिवरंजनी. भगवान भोलेनाथ शिवजी को आनंद
देने वाला राग अर्थात् शिवरंजनी. वैसे तो इस राग में शंकर जयकिसन ने बहुत सारे गीत
निबद्ध किये हैं. यहां हम नमूने के रूप में विशेष कर के दादरा ताल में निबद्ध दो चार गीतों की बात करेगे. मंगल ध्वनि के नाम
से मशहूर शहनाई के सूरों से सजा एक गीत है, ‘बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है...’ पूरे गीत में शहनाई गूंज रही है. सुननेवाले इस
सूरों के जादु में मदहोश हुए जाते हैं... दर्शक परदे पर जो द्रश्य दिखा रहे हैं उस
से ज्यादा इस गीत का आस्वाद लेनें में खो जाते हैं.
फिल्म सूरज का यह
गीत पिया मिलन की बात कर रहा है. अब इसी
राग शिवरंजनी में विरहगीत भी सुनिये. यह जादु है शंकर जयकिसन के संगीत का. एक ही
राग में दो अलग अलग भावविश्व को संगीत रसिकों के सन्मुख लाकर रख देते हैं. रसिकजन
इस सूरो के प्रवाह में बह जाता है. विरहाग्नि प्रगटानेवाला गीत याने फिल्म
प्रोफेसर का यह गीत लताजी और मुहम्मद ऱफी की आवाज में प्रस्तुत यह गीत आप कभी भूल
नहीं पाते, ‘आवाज दे के हमें
तुम बुलाओ, मुहब्बत में इतना ना हम
को सताओ...’ इस गीत की और एक
खूबी यह है कि यह गीत दस मात्रा के ताल झपताल में निबद्ध है. (धीं ना धी धीं ना,
तीं ना धीं धीं ना.) हम सब जानते हैं कि
संगीतकार शंकरजी आला दरजे के तबलावादक थे. इस गीत में दस मात्रा का विकट माना गया
ताल गीत के साथ सुनने मिलता है. राग शिवरंजनी है और गीत में सेक्सोफोन जैसा
योरोपियन साज सुनने में आता है.
ऐसा ही, श्रोता को गमगीन कर देनेवाला शिवरंजनी गीत यह
है, [दोस्त दोस्त ना रहा,
प्यार प्यार ना रहा, जिंदगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा... फिल्म संगम में इस गीत मे
राज कपूर पियानो पर बैठे नजर आ रहे हैं. आप देखिये, तीनों गीत शिवरंजनी राग पर आधारित होते हुए भी तीनो का
संवेदन, तीनों का भावविश्व अलग
है. तीन अलग अलग मूड आप के सामने प्रस्तुत होते हैं. आप मुग्ध हो कर सूरों के साथ
अनायास बह रहे हैं...
दस मात्रा का
जपताल आप ने आवाज देके हमें तुम बुलाओ गीत में सुना. ऐसा ही एक प्रयोग शंकर जयकिसन
ने बारह मात्रा के एकताल के साथ भी किया है. एकताल में भी एक से अधिक गीत निबद्ध
है. आनेवाले एपिसोड में उस की बात करेंगे. तब तक के लिये आज्ञा दीजिये.
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