शंकर जयकिसन
( 21-06-19 को प्रमुख गुजराती दैनिक गुजरात समाचार की चित्रलोक फिल्म पूरक में यह आलेख प्रकाशित हुआ था. )
संगीतकार शंकर जयकिसन के संगीत से सजे यह थोडे मुखडे गुनगुनायें- ‘बरसात में हम से मिले तुम सजन तुम से मिले हम...(पहली ही फिल्म बरसात), रमैया वस्तावैया, मैंने दिल तुझ को दिया...(फिल्म श्री 420), सुनो छोटी सी गुडिया कि लंबी कहानी...(फिल्म सीमा), हम भी हैं तुम भी हो, दोनों हैं आमने सामने.. और होटों पे सच्चाई रहती है, यहां दिल में सफाई रहती है...(फिल्म जिस देश में गंगा बहती है), तुम रुठी रहो, मैं मनाता रहुं...(फिल्म आस का पंछी), तुझे जीवन की डोर से बांध लिया है.. (असली नकली), दिल अपना और प्रीत परायी...(फिल्म दिल अपना और प्रीत परायी), जुही की कली मेरी लाडली नाजों की पली मेरी लाडली... (दिल एक मंदिर), तुम्हें और क्या दुं मैं दिल के सिवा.. (आई मिलन की बेला)....
इन सभी गीतों में एक समानता है. संगीत शंकर जयकिसन का तो है ही. उस के अतिरिक्त भी एक बहुत बडी समानता है. हालांकि फिल्म अलग अलग है, उस की कथाएं अलग अलग है, अदाकार भी अलग अलग है. लेकिन सब से बडी समानदता यह है कि भारतीय संगीत में छः मात्रा के जिस ताल को खेमटा कहते हैं, उस ताल में यह सभी गाने निबद्ध है. तबलागुरु पंडित विजय मोरे के साथ पीछले दिनों बात हो रही थी तब यह तथ्य ध्यान में आया. प्रत्येक गीत की बंदिश अलग है, जिस द्रश्य में फिल्मांकन हुआ है वह बी अलग है, लेकिन सभी गीतों का ताल एक है.
और एक खूबी यह है कि ताल एक होने पर भी प्रत्येक गीत में उस का उपयोग भिन्न भिन्न ढंग से किया गया है. पंडित विजय मोरेने बहुत अच्छी बात कही. एक ही ताल की विविध मात्राओं का वजन बदल दो. ताल का प्रभाव बदल जायेगा. कभीकभार ताल के कायदों का उपयोग करो. तब भी अनोखा प्रभाव आप के सामने उपस्थित होगा. जिस तरह गायन में मुरकी, आलाप, सरगम वगैरह हरकतें आती है ठीक उसी तरह ताल में कायदे आते हैं. यदि आप कभी किसी तबलची का एकल (सोलो)वादन सुनिये. आप के ध्यान में यह बात आ जायेगी.
एकलवादक एक ही ताल के विविध स्वरूपों को भिन्न भिन्न कायदों के सहारे प्रस्तुत करता है. कायदा संपन्न होने का ईशारा एक ही टुकडा तीन बार बजने पर मिलता है. संगीत की परिभाषा में उसे तिहाई कहते हैं, जैसे कि तीटकत गदीगन धा, तीटकत गदीगन धा, तीटकत गदीगन धा.. अंतिम धा बजने पर रसिकजन ताली बजाकर या ‘वाह् वाह्’ अथवा ‘क्या बात है’ कहकर वादक का अभिवादन करते हैं.
शंकर जयकिसन ने खेमटा ताल में बहुत सारे गीत निबद्ध किये हैं. यहां मैंने सिर्फ एक छोटी सी झलक प्रस्तुत की है. शंकरजी खुद आला किस्म के तबलावादक थे. उन के अतिरिक्त और भी निपुण तबला-ढोलकवादक उन के वाद्यवृन्द में थे. दत्ताराम, लाला गंगावणे, अब्दुल करीम, सत्तार, श्रीकांत वालावलकर, अजय स्वामी ईत्यादि. अतैव किसी गीत को निश्चित ताल में निबद्ध करते समय सभी लयवाद्यकारों के साथ मशवरा करते थे. हालांकि अंतिम निर्णय शंकर जयकिसन का रहता था.
इस एपिसोड में हमने सिर्फ खेमटा ताल के वैविध्य की बात की है. ठीक इसी तरह अन्य गीतों के ताल के बारे में भी मजा ले सकते हैं, और दूसरे तालों में भी विविधता तो रहेगी. किसी भी ताल को तीन तरह से आजमा सकते हैं. अत्यंत धीमी गति में जिसे संगीत की परिभाषा में विलंबित कहते हैं. दूसरा प्रकार मध्यम गति में और तीसरा प्रकार त्वरित गतिमे जिसे द्रुत कहते हैं. तीनों प्रकार में अनगिनत कायदे होते हैं और तीनों प्रकार के उपयोग से असंख्य गीत भी सुनने मिलते हैं. प्रत्येक गीत अमूल्य हीरे जैसा बन जाता है.
मिसाल के तौर पर कहरवा लीजिए. धागी नतीं नक तीं... इस चार मात्रा के असंख्य कायदे रहते हैं.. . अब हम ऐसे विविध तालों में निबद्ध गीतों का आस्वाद लेंगे.
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