फिल्म संगीत में शंकर जयकिसन का प्रवेश हुआ तब कम से कमन छः सात गायिका ऐसी थी जो अगले दशक से फिल्मो में गा रही थी. शमसाद बेगम, जोहराबाई अंबालेवाली, अभिनेत्री-गायिका राजकुमारीजी, अभिनेत्री-गायिका सुरैया, अमीरबाई कर्णाटकी वगैरह... नूरजहां तो पाकिस्तान चली गई थी.
शंकर जयकिसन ने किसी गायिका का अनादर नहीं किया, लेकिन युवा संगीत रसिकों को अपने संगीत की और आकर्षित करने के प्रयास में इन दोनों ने नयी आवाज को अधिक महत्त्व दिया ऐसा लगता है. बरसात और आवारा के बाद आयी फिल्मों के गीतों पर नजर करते हुए इस बात का सबूत मिलता है. बादल और काली घटा दोनों ही फिल्मों में लताजी की आवाज छा गयी नजर आती है. शास्त्रीय संगीत की पक्की नींव और तीनों सप्तको में घुमने वाली लताजी की आवाज का फायदा इन दोनों ने लिया ऐसा कह सकते हैं.
बादल की कथा में योरोपियन लोककथा के नायक रोबिन हूड का प्रभाव था. अमीरों को लूट कर गरीबों को सहाय करनेवाले नायक का किरदार राज कपूर के सालेसाहब प्रेमनाथ ने किया था. फिल्म की हीरोईन थी मधुबाला, जिस ने एक राजकुमारी का किरदार निभाया था. हिन्दी फिल्मों में अक्सर होता है वैसे ही यहां हीरो हीरोईन एकदूसरे से प्यार करते हैं. फिल्म में आठ गीत थे जिस मे अकेली लताजी को छः गीत गाने का मौका मिला था.
बचे दो गीत. उस में एक मूकेश की आवाज में था और दूसरा मूकेश लताजी का युगलगीत था. मूकेश के एकलगीत मैं राही भटकने वाला हुं कोई क्या जाने मतवाला हुं... उन दिनों हर युवा के होठों पर था. इस गीत की तर्ज पर बहुत सी प्रादेशिक भाषाओं में भक्तिगीत भी रचे गये थे और कम से कम दक्षिण मुंबई के मंदिरों में हर सुबह शाम सुनने में आता था. यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ था.
समीक्षको का मंतव्य ऐसा था कि मूकेश के इस गीत ने प्रेमनाथ के अभिनय की कमजोरीयों को ढंक दिया था.
पहले भी मैं कह चूका हुं. यहां पुनरावृत्ति कर रहा हुं कि शंकर जयकिसन ने भैरवी रागिणी के जितने स्वरूप बनाये जा सकते थे वे सब को आजमाया था. यहां लताजी ने गाये हुए एक गीत की बात कर रहा हुं. अत्यंत सादगीभरे शब्दों में शैलेन्द्र ने इस गीत में जीवन-दर्शन (PHILOSOPHY) प्रस्तुत किया है. परदे पर यह गीत मधुबाला पे फिल्मांकित किया गया था. आप चाहे परदे पर देखिये-सुनिये या सिर्फ गीत को सुनिये, आप के दिल-ओ-दिमाग पर यह गीत छा जायेगा.
भैरवी का जादु इस गीत में चारों और पथराया है. लताजी ने गाये इस गीत के बोल हैं, ‘दो दिन के लिये महेमांन यहां, मालूम नहीं मंजिल है कहां, अरमान भरा दिल तो है मगर, जो दिल से मिलेवो दिल है कहां...’ दूध में शक्कर डालने के बाद जिस तरह दूध-शक्कर एक हो जाते हैं, ठीक उसी तरह यहां गीत के बोल और तर्ज एक हो जाते हैं. गीत के बोल की तरह यह बंदिश भी सादगीपूर्ण होते हुए भी मधुर और यादगार थी.
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