शंकर जयकिसन 14
फ्री लान्सींग अर्थात् राज कपूर के अतिरिक्त अन्य फिल्म सर्जकों के लिये भी संगीत परोसने की जिम्मेदारी लेना शुरु किया ठीक उसी समय शंकर जयकिसन को लाहौर से आये हुए फिल्म सर्जक दलसुख पंचोली की एक फिल्म का काम मिला. यह वही दलसुख पंचोली थे जिन्हों ने धुरंधऱ संगीतकार ओ पी नय्यर औऱ अदाकार प्राण को पहला मौका दिया था.
देश का बंटवारा हुआ तब दो बडी हस्तियां हम गवां चूके थे एक हस्ति पाकिस्तान चली गई थी. वह थी मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां. दूसरी हस्ति का निधन हो चूका था. वे थे अमर गायक अभिनेता कुंदन लाल सहगल. सन 1947 की जनवरी की 18 वी तिथि को आप का देहांत हो चूका था.
दलसुख पंचोली की फिल्म नगीना का संगीत सर्जन करते समय शंकर जयकिसनने यह दो हस्तियों को अपने समक्ष रखी होंगी ऐसा लगता है. सहगल साहब की याद अभी तरोताजा थी. अतैव शंकर जयकिसन के सहगल साहब जैसी आवाझ और गायन शैली के कलाकार को आजमाने का निर्णय किया. इस तरह यह दोनों सहगल साहब की स्मृति को जीवंत रखने की कोशिश कर रहे थे.
वह कलाकार थे सी एच आत्मा. इन्हों ने पहले ओ पी नय्यर के संगीत में प्रीतम आ न मिलो गीत गाया था जो कि काफी हिट हुआ था. नूरजहां की अनुपस्थिति में शंकर जयकिसन ने एक तजुर्बा किया. लताजी के उपरांत शमसाद बेगम को भी इस फिल्म के लिये करारबद्ध किया.
सी एच आत्माने फिल्म नगीना में जो गीत गाये वो हिट तो हुए, लेकिन अब समय बदल रहा था. नई पीढी के संगीत रसिकों को मुहम्मद रफी, मूकेश, मन्ना डे इत्यादि गायको की गायकी पसंद आने लगी थी. अतैव नगीना के पश्चात् शंकर जयकिसन ने सी एच आत्मा को ज्यादह मौका नहीं दिया. कुछ ऐसा ही शमसाद बेगम के साथ भी हुआ.
इस फिल्म के लिये शंकर जयकिसन ने और एक प्रयोग किया था. इस फिल्म के एक गीत तू ने हाय मेरे जख्मे जिगर को छू लिया में लयवाद्य के रूप में उस समय के अच्छे मटकीवादक बलबीर सिंघ के हाथों मटकी बजवाई थी. यह तजुर्बा भी काफी हद तक कामियाब हुआ था.
और हां, मुल्क की आझादी के बाद नगीना एैसी पहली फिल्म थी जिसे ओनवी फोर एडल्ट ओडियन्स याने पुख्त वय के दर्शकों के लिये ऐसा प्रमाणपत्र सेन्सर बोर्ड की तरफ से दिया गया
फिल्म में एक भूतिया हवेली थी, लोकेशन काफी डरावना था. अभिनेत्री नूतन ने इस फिल्म में बिकिनी शोट दिया था. ऐसा करनेवाली वह पहली भारतीय अभिनेत्री थी. शायद इसी वजह से इस फिल्म को ए प्रमाणपत्र दिया गया था. दिलचस्प बात यह हुयी की जब नूतन फिल्म देखने गयी तो उसे बच्ची समजकर थियेटर में प्रवेश देने से ईनकार कर दिया गया. फिल्म की हीरोइन होने के बावजूद नूतन फिल्म नहीं देख सकी.
नगीना में आठ गाने थे. तीन गाने सी एच आत्माने गाये, तीन एकलगीत लताजीने गाये और एक एक गीत लताजी औऱ शमसाद बेगम ने मुहम्मद रफी के साथ गाये.
जै से कि पहले आप को बताया गया कि सहगल साहब की याद अभी ताजी थी अतैव सी एच आत्मा के तीनों गीतों को अच्छा प्रतिभाव मिला. इन तीनों गीतों में ‘रोऊं मैं सागर किनारे...’ रसिकों को अधिक पसंद आया. दूसरे दोनों गीत ‘दिल बेकरार है...’ और ‘इक सितारा है आकाश में..’ भी उन दिनों लोकप्रिय हुए थे.
लताजी के तीनों नगमे रसिक भा गये थे. ‘याद आयी है, बेकसी छायी है...’, ‘कैसी खुशी की है रात, बालम है मेरे साथ...’ और ‘तूने हाय मेरे जख्मे जिगर को छू लिया...’ मुहम्मद ऱफी के साथ लता का जो गीत था वह ने ‘ हम से कोई प्यार करो जी...’ और रफी तथा शमसादने गाया हुआ गीत ‘ओ डियर आओ नीअर..’ भी शंकर जयकिसन के चाहनेवालों को पसंद पडा था.
यहां एक बात ठीक से समज लेनी चाहिये. राज कपूर की बरसात या आवारा जैसी पिल्मो के संगीत की तुलना नगीना के संगीत से मुमकीन नहीं है. लेकिन इतना अवश्य कह सकते हैं कि इस फिल्म का संगीत भी मधुर था. राज कपूर की अनुपस्थिति महसूस नहीं हुयी. अहमदाबाद के शंकर जयकिसन फाउन्डेशन के स्नेह पटेल के शब्दों में कहें तो फिल्म सर्जक कोइ भी हो, कलाकार कोइ भी हो, शंकर जयकिसन ने कभी भी अपने काम में दिलचोरी नहीं की.
नगीना के बाद शंकर जयकिसन के संगीत से सजी और दो फिल्में आयी-बादल और काली घटा. इन दोनों फिल्मों के संगीत की अलपझलप बातें करने के बाद हम ट्रेक बदलेंगें. तब तक के लिये इन्तजार कीजिये.
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