संगीतप्रेमीयों को जयकिसन के बारे में अधिक जानकारी कैसे मिली ?


शंकर जयकिसन-12

  राज कपूर की फिल्में हिट होने के बावजूद संगीतकार शंकर जयकिसन के परिवार या निजी बाबतों के बारे में अधिक जानकारी किसी के पास नहीं थी. ऐसे में एक गुजराती साहित्यकार को अनायास जयकिसन के बारे में जानकारी प्राप्त करने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ. स्वनामधन्य इस साहित्यकार को गुजराती साहित्य के एकाधिक पुरस्कार प्रापत् हो चूके हैं. फिल्म संगीत के बारे में भी इन्हों ने बहुत लीखा है.

यह साहित्यकार श्री रजनी कुमार पंड्या एक सहकारी बैंक में मेनेजर थे. 1980 के दशक में उन की बदली बैंक की दक्षिण गुजरात के वलसाड शहर की शाखा में हुयी. बैंक में एक दिन किसी से बात करते हुए उन को कहा गया कि शंकर जयकिसनवाले जयकिसन पंचाल इसी शहर के करीब बांसदा गांव के रहनेवाले हैं.

   इतना सुनते ही पंड्याजी बहुत खुश हुए. एक शाम अपनी कार में वे जयकिसन का जन्मस्थान ढूंढने नीकले. बहुत घुमने पर किसी से ज्यादह जानकारी नहीं मिली. लेकिन पंड्याजी जानकारी प्राप्त करने के लिये कटिबद्ध थे. किसीने कहा, जयकिसन के भानजे की चश्मे की दुकान वलसाड में हैं. भानजे का नाम भी जयकिसन है और दुकान पर जय ओप्टिकल्स एैसा नाम लिखा हुआ है. पंड्याजी ने कार घुमाइ उस दिशा में. जय ओप्टिकल्स पहुंचे. जयकिसन के भानजे से मिले. उन को अपना परिचय दिया.

    और जानकारी का भंडार जैसै खुल गया. जयकिसन का भानजा जय पंड्याजी को अपने घर ले गये जहां जयकिसन की बहन और दूसरे रिश्तेदार भी मिले. ढेर सारी जानकारी प्राप्त की. जयकिसन ने जिस संगीत शिक्षक से भारतीय संगीत का प्राथमिक ज्ञान प्राप्त किया था उन का साक्षात्कार भी इन्हों ने किया. तत्पश्चात् इन्हों ने सारी जानकारी के आधार पर अभ्यासपूर्ण लेख तैयार किये.

  पंड्याजी जिस गुजराती दैनिक में झबकार (चिनगारी- अंग्रेजी भाषा में कहते हैं - SPARK ) में यह जानकारी दो तीन किस्तों में प्रसिद्ध की. सभी भारतीय भाषाओं के संपादक भोंचक्के रह गये. अंग्रेजी अखबारों ने भी जयकिसन के बारे में पंड्याजी के लेखों का भावानुवाद प्रकाशित किया और सारी दुनिया को जयकिसन के बारे में सत्यकथा प्राप्त हुयी.

    ऐसा क्युं हुआ ? यह समझना मुश्किल नहीं है. अधिकतर संगीत प्रेमीयों को संगीतकार की निजी बातों का पता नहीं होता है. संगीतकार का जन्म कहां हुआ, उस के मातापिता कौन थे, क्या करते थे, संगीतकार की पढाई कहां हुयी, संगीत कहां सीखे, फिल्मों में संगीत परोसने का पहला अवसर कब, कहां कैसे मिला यह सब जानकारी कभीकभार संगीतकार के दिवाने चाहनेवालों को भी नहीं होती है. पंड्याजी को शंकर जयकिसन के दुनियाभर के चाहनेवालों का अभिनंदन मिला. दशकों के बाद वांसदा में जयकिसन की प्रतिमा भी स्थापित हुयी. तभी भी रजनी कुमार पंड्या वांसदा में उपस्थित थे.

    पंड्याजी ने जयकिसन के बारे में लिखा उस से पहले किसी को भी जयकिसन के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी. अतैव अंग्रेजी दैनिकों ने भी पंड्याजी के सौजन्य से जयकिसन की पुरुषार्थकथा पुनः प्रकाशित की.

   अब फिर से मुख्य विषय पर वापस चलते हैं. हकीकत यह है कि उस जमाने में राज कपूर की तरह बहुत से फिल्म सर्जक संगीत की सूझ समज रखते थे. जैसे कि ए आर कारदार, बी आर चोपरा, महेबूब खान, महेश भट्ट के पिता नानाभाई भट्ट, मनमोहन देसाइ के पिता कीकुभाई देसाइ वगैरह.

 आज कल के फिल्म सर्जको में ऐसी खूबी संजय लीला भणसाली में हैं ऐसा स्वर किन्नरी लता मंगेशकर ने एक मुलाकात में कहा था. राज कपूर की संगीत के प्रति लगन को देखते हुए ऐसी गोसिप भी शुरु हुयी थी के नाम भले ही शंकर जयकिसन का हो, संगीत में 90 प्रतिशत काम राज कपूर का खुद का है. वास्तव में ऐसा नहीं था. ऐसी गोसिप को रोकने के लिये ही 1950 के दशक के उत्तरार्ध में शंकर जयकिसन ने फ्री लान्स काम करना शुरू किया अर्थात् राज कपूर के अतिरिक्त अन्य फिल्म सर्जकों के लिये भी संगीत परोसने लगे थे.

Comments

  1. लता ने खुन्नस में शंकर जयकिशन का जान बूझ कर अपमान किया यह कह कर कि राजकपूर की फिल्मों में ९० % संगीत RK का होता था. यदि ऐसा होता तो बॉबी को छोड़कर जिसमें शंकर जयकिशन के ही संगीत को ज़्यादातर उपयोग में लिया गया बाकी की फिल्में प्रेम रोग, सत्यम शिवम् सुंदरम, राम तेरी गंगा मैली (जिसमें 'सुन सायबा सुन', शंकर जयकिशन की ही धुन थी) और हिना के संगीत में राजकपूर का जादू कहाँ चला गया था.
    लता महान गायिका हैं, इसमें ९० प्रतिशत ईश्वरीय देन और १० प्रतिशत उनका अपना परिश्रम है. लेकिन इस महान गायिका की आवाज़ जितनी ही मीठी है उतनी ही कड़वी इनकी फितरत है. शंकर जयकिशन ने इन्हे एक से एक गाने दे कर इन्हें कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया। उन्होंने उस समय की किसी प्रतिष्ठित गायिका से अपने गाने न गवा कर लता तो तरजीह दी। क्यों कि उनका कहना था कि वह भी नए थे और नयों के साथ ही टीम बनाएंगे. उनकी इस उदारता को लता ने अपना घमंड बना लिया। लेकिन सच तो सच है.

    रजनी कुमार पंड्या जी ने सचमुच जयकिशन जी के बारे में जो महत्वपूर्ण जानकारी दुनिया को बताई है इसके लिए प्रत्येक शंकर जयकिशन प्रशंसक उनका आजीवन आभारी रहेगा

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  2. Read full chapter on Jaikishan on this blog

    https://rajnikumarpandya.wordpress.com/

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