रुठने मनाने के गीतों में भी जबरदस्त ताजगी भरी दी थी


शंकर जयकिसन-9

फिल्म बरसात के गीतों का आस्वाद लेते समय आप को बताया था कि किस तरह शंकर जयकिसन ने शृंगार के दो पहलु मिलन और बिरहा को दो गीतों में प्रस्तुत किया था. दोनों ही गीत भैरवी में स्वरनिबद्ध थे. शृंगार का और एक मजेदार पहलु है. वहे रुठना और मनाना.

अपना प्रियपात्र रुठे वह किस को जंचे जी ? रुठे प्रेमी को जल्द से जल्द मनाने का प्रयास हर कोइ व्यक्ति करता है. कारकिर्द के दूसरे तबके में शंकर जयकिसन ने ऐसे दो चार गीत भी दिये जिस में रुठने मनाने की बात थी. विलंब का कारण यह था कि फिल्म के कथानक में ऐसे गीत की सिच्युएशन होना आवश्यक है. मजेदार बात यह है कि रुठने मनानेवाले गीत भी भैरवी रागिणी में ही निबद्ध थे. आप को भी यह गाने अवश्य याद होंगे. फिल्म संगम में यह गीत है- कथानायक सुंदर पूछता है ‘बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं ?’ जवाब में राधा कहती है, नही.... कभी नहीं.... 
हालांकि इस गीत को छेडछाड का गीत कहना उचित होगा. यह रूठना मनाना नहीं है. दूसरे जिस गीत की बात हम करने जा रहे हैं. वह भी इसी तरह की छेडछाड का माना जाये तो उचित रहेगा. संगम राज कपूर की फिल्म थी तो एन इवनिंग इन पेरिस राज के छोटेभाइ शम्मी कपूर की थी अर्थात् शम्मी कपूर फिल्म का हीरो था. शक्ति सामंत की यह फिल्म के जिस गीत की बात हम कर रहे हैं वह यह रहा- ‘आसमान से आया फरिश्ता प्यार का सबक सीखलाने को, दिल में है तसवीर यार की आया हुं वो दिखलाने, कहो प्यार है तुम से...’  नायिका (शर्मिला टैगोर) बडे नखरे के साथ प्रत्युत्तर देती है.. ‘जाज्जा...’ 
बीते युग की एक नृत्यांगना-अभिनेत्री आशा पारिख सही कहती है कि कपूर खानदान के कलाकारों में लय जन्मजात है. उन के साथ डान्स करते हुए स्टेप्स मिलाना आसान नहीं है.... शम्मी कपूर के लिये तो ऐसा भी कहा जाता है कि वह बहेतरीन तबलावादक भी था.

इस गीत के साथ और एक खूबसुरत वाकया भी जुडा ङुआ है. शम्मी कपूर अपने हर गीत के ध्वनिमुद्रण (रेकोर्डिंग) में उपस्थित रहता था ताकि वह अपने डान्स के बारे में सोच सकें. लेकिन इस गीत का रेकोर्डिंग हुआ तब वह बम्बई में नहीं था. फिर भी रेकोर्डिंग हो गया.  शम्मी कपूर ने जब यह गाना सुना तो बहुत खुश हुआ. उस ने मुहम्मद रफी साहब को फोन किया कि मैं जिस तरह से इस गीत में डान्स करना चाहता था ठीक उसी तरह आप ने गाया है. यह कैसे संभव हुआ. 
रफी साहब ने हंसते हंसते जवाब दिया, ‘आप के डान्स स्टाईल से मैं वाकिफ हुं. पहले भी आप के ऐसे गीत गा चूका हुं. मैंने डायरेक्टर से पूछ लिया कि फिल्मांकन किस कलाकार के साथ होनेवाला है, तो उन्हों ने आप का नाम दिया, फिर क्या था, आप किस तरह पेश आयेंगे उस की कल्पना कर के मैंने यह गीत गा लिया...’  यह सुनकर शम्मी कपूर अचंबित हो गया, भई क्या बात है...

परफेक्ट रूठना मनाना की सिच्युएशन नहीं मिलने पर भी कभी कभी बहुत खूबसुरत गीत मिल जाता है. जैसे कि फिल्म बसंत बहार का राग झिंझोटी आधारित यह गीत ‘जा जा रे जा बालमवा, सौतन के संग रात बिताई, काहे करत अब झूठी बतियां... ’ यह भी शंकर जयकिसन का एक यादगार गीत है... 

ऐसा ही एक मधुर गीत फिल्म बेटी बेटे में शंकर जयकिसनने राग दरबारी कान्हडा में स्वरबद्ध किया था. (कइ विद्वान इस गीत को राग अडाणा आधारित मानते हैं). इस में राधाकृष्ण के सवाल जवाब का निरुपण हुआ था-‘ राधिके तुने बंसरी चुराई, बंसरी चुराइ क्या तेरे मन आयी, काहे को रार मचाई मचाई रे राधिके तुने बंसरी चुराई... 

शृंगार की विविध संवेदना को व्यक्त करनेवाले गीतों का उल्लेख करते हुए यह सारी बातें याद आ गयी...( क्रमशः)

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