शंकर जयकिसन-8
बरसात फिल्म प्रस्तुत होने से पहले ही बरसात के गाने देश के कोने कोने में लोकप्रिय हो चूके थे. हालांकि शंकर जयकिसन की यात्रा में अभी एक अवरोध था. उन दिनों पंडित जवाहरलाळ नहेरु की सरकार में एक ऐसे मंत्री महोदय थे जिन के दिल में फिल्म संगीत के लिये सद्भावना नहीं थी. वे फिल्म संगीत को हलका मानते थे. इन्होंने आकाशवाणी (All India radio) पर फिल्म संगीत प्रसारित होने से रोक दिया था. फिल्म संगीत पर पाबंदी ठोक दी थी.उन दिनों रेडियो सिलोन भी नहीं था. फिर भी फिल्म बरसात का संगीत हिट हुआ. वह कैसे ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए राज कपूर के प्रचारक और पटकथा लेखक वी पी साठेने बहुत सुंदर दिया था. उन्हों ने कहा, आप शंकर जयकिसन के समकालीन संगीतकारों की बंदिशों के साथ शंकर जयकिसन की तर्जों को रखिये. अब देखिये के शंकर जयकिसन की बंदिशें एकदम आसान है और संगीत नहीं जानने वाला आम आदमी भी मजे से गा सकता है. यह बंदिशे माधुर्य प्रधान है. सिर्फ सरल नहीं, सुननेवाले में नया उत्साह भरते हुए और गीत के ताल में ताल मिलाने की इच्छा पैदा करें ऐसा यह संगीत है.
पढिये इस परिच्छेद को फिर से, गौर से, पूरे ध्यान से. तत्पश्चात विचारिये. शंकर जयकिसनने दूग्ध-शर्करा पद्धति से भारतीय और पाश्चात्या दोनों संगीत का समन्वय किया जिस की पराकाष्ठा का अहसास आप को बाद में आर डी बर्मन, बप्पी लाहिरी और आज के ए आर रहेमान के संगीत में हो रहा है.
मिसाल के तौर पर फिल्म बरसात का छोड गये बालम मोंहे हाय अकेला छोड गये गीत लीजिये. सदा सुहागिन रागिणी भैरवी में निबद्ध इस गीत के पार्श्वसंगीत में बजते हुए साज और पूरा यह गीत, सुननेवाले को गमगीनी से भर देता है. ऐसे और भी बहुत गीत हैं जिस में शंकर जयकिसन ने ऐसे तजुर्वे किये हैं.
मैं जब संगीतकार नौशाद साहब की जीवनी लीख रहा था तब उन्हों ने बेझिझक कहा था कि शंकर जयकिसन ने कोमन मेन को गुनगुनाता कर दिया था. संगीत सीखा हो या न सीखा हो लेकिन आम आदमी गाने लगा था. यह सिद्धि शंकर जयकिसन की थी. और एक बात. बरसात के संगीतने राज कपूर को अपनी फिल्म कंपनी आर के स्टुडियो के लिये एक अमूल्य लोगो दिया. कमर से झुकी हुयी नायिकाको एक हाथ से थामे हुए हीरो और हीरो के दूसरे हाथ में वॉयलिन. फिल्म बरसात के एक द्रश्य में यह चित्रांकन था जो राज कपूर के लिये लोगो (परिचयात्मक चित्र) बन गया.
यहां और एक दिलचस्प बात याद आ गई. देव आनंद किशोरावस्था में वॉयलिन बजाना सीख रहे थे. जैसे ही राज कपूर ने वॉयलिन के साथ लोगो पसंद किया, देव साहब ने वॉयलिन सीखना छोड दिया. यह बात खुद देव साहब ने की थी.
लाहोर कॉलेज में पढते थे तब कॉलेज के वार्षिक समारोह में सायगल साहब के गीत गाते और वॉयलिन बजाना सीखते थे. राज और देव आनंद की दोस्ती विशिष्ट थी. राज साहब का निधन हुआ तब देव आनंद कैमरे की परवाह किये बिना दूसरे बहुत लोगों के सामने छोटे बच्चे की तरह फफक फफक कर रो पडे थे.
खैर बात यह है कि शंकर जयकिसन के संगीत में अनोखी ताजगी थी, एक नया सूर्योदय था जो कि सांप्रत और आनेवाली पीढीयों के संगीत रसिकों को दिवाना बनाने के लिये काफी थी. यदि आप संगीत के साधक हैं तो राग ललित को याद कर लीजिये. ललित में दो मध्यम है.
तीव्र मध्यम इस बात की याद ताजा रखता है कि अभी रात संपन्न नहीं हुयी है और शुद्ध मध्यम सुबह हो रही है इस बात का संकेत करता है. ठीक राग ललित की तरह शंकर जयकिसन का संगीत आनेवाले कल का सूचन करता था. उन दोनो को इस बात का अहसास नहीं था. वे दोनों तो स्वतंत्र रूप से संगीतकार बनने का अवसर प्राप्त हुआ इस खुशी में अपनी संपूर्ण प्रतिभा जोडकर काम कर रहे थे.
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