शंकर जयकिसन-7
काव्य हो या उपन्यास, छोटी सी कहानी हो या प्रबंध, नाटक हो या फिल्म हो. विश्व साहित्य में द्रष्टिपात करते हुए शृंगार रस सदैव ज्यादह निरुपा गया है. प्रेम, प्यार, मुहब्बत, इश्क, प्रणय ईत्यादि शब्दों में प्रस्तुत रोमान्स के तीन प्रधान संवेदन माने गये हैं- मिलना, बिछडना और मीठा कलह अर्थात् रुठना-मनाना. इत्तेफाक से शंकर जयकिसन को अपनी पहली ही फिल्म बरसात में इस तीन में से दो जजबातों को साकार करने का सुवर्ण अवस प्राप्त हुआ. हुआ यूं कि राज कपूर खुद भी सदा सुहागिन रागिणी भैरवी के दिवाने थे. शंकर जयकिसन भी भैरवी के प्रेमी थे. अतैव हुआ यूं कि पहली ही फिल्म बरसात में शंकर जयकिसन ने भैरवी आधारित छः सात गीत दिये. सभी के सभी गीत बहुत ही लोकप्रिय हो गये.
इस बारे में अधिक बातें करने से पहले यहां और एक बात करना चाहुंगा. फिल्म संगीत 100 प्रतिशत शास्त्रीय संगीत नहीं है. आम आदमी के मनोरंजन के लिये फिल्म संगीतकारों ने हमारे विविध रागोंमें से थोडे राग चुने और उस पर आधारित गीत बनाये. इस लिये यदि शास्त्रीय संगीत का कोइ चाहनेवाले ने फिजुल सवाल नहीं करने चाहिये कि फलां गीत में संबंधित राग के वादी संवादी स्वर कहां है, भारतीय संगीत के ऋषि-मुनियों ने कहा है, रंजयति इति राग.. जो सुननेवाले को आनंद प्रदान करता है, वह राग है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम फिल्म संगीत की और खास कर के शंकर जयकिसन के संगीतकी बातें करने वाले हैं. और एक स्पष्टता. शंकर जयकिसन ने जीतने गानें दिये हैं ऊन सभी गानों की व्यक्तिगत रूप में बातें करना संभव नहीं है. हम शंकर जयकिसन के संगीत सर्जन की झलक दिखलायेंगे.
फिल्म बरसात के भैरवी आधारित गीतों की बात करतें तब मिलन और विरह दोनेां जजबातों को शंकर जयकिसन ने यथोचित न्याय दिया है. मिलन में जो आनंद अनुभूति होती है, जो उत्तेजना होती है उस का यथार्थ चित्रण आप को फिल्म के शीर्षक गीत में मिलेगा- बरसात में हम से मिले तुम सजन तुम से मिले हम बरसात में... पियु मिलन का आनंद व्यक्त हुआ है और एक गीत में हो... मुझे किसी से प्यार हो गया... तथा मेरी आंखों में बस गया कोइ रे... इस तीनों गीतों में विशिष्ट प्रकार के आनंद और उत्तेजना का एहसास होता है... गीतों की सूरावलि और उस का लय दोनों ही श्रोता को भावविभोर कर देता है... तीनों गीत खेमटा ताल में निबद्धद्द है.
और मिलन के बाद बिछडना यानी विरह भी स्वाभाविक हो जाता हे. नाभिनाद से गानेवाले अनन्य गायक मूकेश और लताजी के कंठ में एक विरह गीत भैरवी पर आधारित हुआ है, छोड गये बालम मोंहे हाय अकेला छोड गये... छूट गया बालम हाय साथ हमारा छूट गया...तूट गया बालम मेरा प्यार भरा दिल तूट गया.. यहां संगीतकारों ने सिर्फ सूरावलि नहीं रची है, अपितु जिसे ओवरलेपींग कहते हैं अर्थात् एक गायक अभी अपनी पंक्ति गा ही रहा है, बीच में कहीं से दूसरा गानेवाला पंक्ति को ऊठा लेता है.
यह गीत संयमित कहरवा ताल में निबद्ध है. अब आप ध्यान दीजिये, मिलन और विरह दोनों के लिये राग एक ही है, लेकिन दोनों गीत के भाव अलग है, संवेदना अलग है.. एक में मिलने का आनंद है, दूसरे में बिछडने का दर्द है. मिलन में ताक् धीना धीं शब्दों द्वारा आवेग को प्रस्तुत किया गया है. खेमटा ताल में जैसे लोग नाच रहे हैं. विरह में संयमित लयवाला कहरवा दर्द का अहेसास कराता है.
यहां शंकर जयकिसन की और एक विशेषता का उल्लेख आवश्यक है. उन के आगमन के पूर्व जिन संगीतारों ने विरह की बात कही है, वहां लय नहीं है. मिसाल के तौर पर फिल्म बाबुल का संगीतकार नौशाद यह गीत छोड बाबुल का घर आज पी के नगर... इस गीत के करुण संस्करण में लयवाद्य का उपयोग नहीं किया गया है.. दर्द महसूस कराने के लिये तर्ज को यूं ही प्रस्तुत किया गया है. लेकिन शंकर जयकिसन स्वर और लय दोनेां का यथोचित उपयोग कर के गीत को वेदनासिक्त कर देते हैं. सुननेवाला गमगीन हो जाता है..
इसी फिल्म के और दो गीत ध्यान से सुनिये. इस संवेदना का अहेसास होगा. वो दो गीत यह रहे- अब मेरा कौन सहारा... और मैं जिंदगी में हरदम रोता ही रहा हुं. इस दोनों गीतों में भी लय वाद्य को सूरावलि के साथ रक्खा है. दर्द को घना बनाने में यहां ताल भी अपना प्रदान करता है. सुननेवाला गीत के साथ खो जाता है. अपनी पहली ही फिल्म में शंकर जयकिसन ने यह कमाल कर दिखाया.
नौशाद साहब की बात हो रही है तब और एक वाकया याद आ गया. नौशाद साहब की एक तर्ज इन दोनों को बहुत अच्छी लगी थी. जवां है मुहब्बत हसीं है जमाना का असर इन दोनों पर इतना था कि हवा में ऊडता जाये मेरा लाल दुपट्टा गीत में उस का प्रभाव महेसूस होता है. ठीक इसी तरह हुश्नलाल भगतराम के गी तेरे नैनों ने जादु किया का प्रभाव जिया बेकरार है आयी बहार है... गीत में नजर आता है. यद्दपि शंकर जयकिसन ने अद्दल जैसी नक्कल नहीं की है. तर्ज को अपनी अदा में प्रस्तुत किया है.
और हां, बरसात के सभी नौ गानें लताजी की आवाजमे प्रस्तुत हुए. बरसात से ही पार्श्वगायक-गायिका का नाम रेकोर्ड पर लीखना शुरु हुआ. उस से पहले कथानायिका या नायक का नाम रेकोर्ड पर छपता था. राज कपूर और शंकर जयकिसनने लताजी का नाम फिल्म मे परदे पर और रेकोर्ड पर प्रस्तुत किया था. इस तरह शंकर जयकिसन की कारकिर्द का आरंभ कलात्मक विस्फोट के साथ हुआ.
काव्य हो या उपन्यास, छोटी सी कहानी हो या प्रबंध, नाटक हो या फिल्म हो. विश्व साहित्य में द्रष्टिपात करते हुए शृंगार रस सदैव ज्यादह निरुपा गया है. प्रेम, प्यार, मुहब्बत, इश्क, प्रणय ईत्यादि शब्दों में प्रस्तुत रोमान्स के तीन प्रधान संवेदन माने गये हैं- मिलना, बिछडना और मीठा कलह अर्थात् रुठना-मनाना. इत्तेफाक से शंकर जयकिसन को अपनी पहली ही फिल्म बरसात में इस तीन में से दो जजबातों को साकार करने का सुवर्ण अवस प्राप्त हुआ. हुआ यूं कि राज कपूर खुद भी सदा सुहागिन रागिणी भैरवी के दिवाने थे. शंकर जयकिसन भी भैरवी के प्रेमी थे. अतैव हुआ यूं कि पहली ही फिल्म बरसात में शंकर जयकिसन ने भैरवी आधारित छः सात गीत दिये. सभी के सभी गीत बहुत ही लोकप्रिय हो गये.
इस बारे में अधिक बातें करने से पहले यहां और एक बात करना चाहुंगा. फिल्म संगीत 100 प्रतिशत शास्त्रीय संगीत नहीं है. आम आदमी के मनोरंजन के लिये फिल्म संगीतकारों ने हमारे विविध रागोंमें से थोडे राग चुने और उस पर आधारित गीत बनाये. इस लिये यदि शास्त्रीय संगीत का कोइ चाहनेवाले ने फिजुल सवाल नहीं करने चाहिये कि फलां गीत में संबंधित राग के वादी संवादी स्वर कहां है, भारतीय संगीत के ऋषि-मुनियों ने कहा है, रंजयति इति राग.. जो सुननेवाले को आनंद प्रदान करता है, वह राग है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम फिल्म संगीत की और खास कर के शंकर जयकिसन के संगीतकी बातें करने वाले हैं. और एक स्पष्टता. शंकर जयकिसन ने जीतने गानें दिये हैं ऊन सभी गानों की व्यक्तिगत रूप में बातें करना संभव नहीं है. हम शंकर जयकिसन के संगीत सर्जन की झलक दिखलायेंगे.
फिल्म बरसात के भैरवी आधारित गीतों की बात करतें तब मिलन और विरह दोनेां जजबातों को शंकर जयकिसन ने यथोचित न्याय दिया है. मिलन में जो आनंद अनुभूति होती है, जो उत्तेजना होती है उस का यथार्थ चित्रण आप को फिल्म के शीर्षक गीत में मिलेगा- बरसात में हम से मिले तुम सजन तुम से मिले हम बरसात में... पियु मिलन का आनंद व्यक्त हुआ है और एक गीत में हो... मुझे किसी से प्यार हो गया... तथा मेरी आंखों में बस गया कोइ रे... इस तीनों गीतों में विशिष्ट प्रकार के आनंद और उत्तेजना का एहसास होता है... गीतों की सूरावलि और उस का लय दोनों ही श्रोता को भावविभोर कर देता है... तीनों गीत खेमटा ताल में निबद्धद्द है.
और मिलन के बाद बिछडना यानी विरह भी स्वाभाविक हो जाता हे. नाभिनाद से गानेवाले अनन्य गायक मूकेश और लताजी के कंठ में एक विरह गीत भैरवी पर आधारित हुआ है, छोड गये बालम मोंहे हाय अकेला छोड गये... छूट गया बालम हाय साथ हमारा छूट गया...तूट गया बालम मेरा प्यार भरा दिल तूट गया.. यहां संगीतकारों ने सिर्फ सूरावलि नहीं रची है, अपितु जिसे ओवरलेपींग कहते हैं अर्थात् एक गायक अभी अपनी पंक्ति गा ही रहा है, बीच में कहीं से दूसरा गानेवाला पंक्ति को ऊठा लेता है.
यह गीत संयमित कहरवा ताल में निबद्ध है. अब आप ध्यान दीजिये, मिलन और विरह दोनों के लिये राग एक ही है, लेकिन दोनों गीत के भाव अलग है, संवेदना अलग है.. एक में मिलने का आनंद है, दूसरे में बिछडने का दर्द है. मिलन में ताक् धीना धीं शब्दों द्वारा आवेग को प्रस्तुत किया गया है. खेमटा ताल में जैसे लोग नाच रहे हैं. विरह में संयमित लयवाला कहरवा दर्द का अहेसास कराता है.
यहां शंकर जयकिसन की और एक विशेषता का उल्लेख आवश्यक है. उन के आगमन के पूर्व जिन संगीतारों ने विरह की बात कही है, वहां लय नहीं है. मिसाल के तौर पर फिल्म बाबुल का संगीतकार नौशाद यह गीत छोड बाबुल का घर आज पी के नगर... इस गीत के करुण संस्करण में लयवाद्य का उपयोग नहीं किया गया है.. दर्द महसूस कराने के लिये तर्ज को यूं ही प्रस्तुत किया गया है. लेकिन शंकर जयकिसन स्वर और लय दोनेां का यथोचित उपयोग कर के गीत को वेदनासिक्त कर देते हैं. सुननेवाला गमगीन हो जाता है..
इसी फिल्म के और दो गीत ध्यान से सुनिये. इस संवेदना का अहेसास होगा. वो दो गीत यह रहे- अब मेरा कौन सहारा... और मैं जिंदगी में हरदम रोता ही रहा हुं. इस दोनों गीतों में भी लय वाद्य को सूरावलि के साथ रक्खा है. दर्द को घना बनाने में यहां ताल भी अपना प्रदान करता है. सुननेवाला गीत के साथ खो जाता है. अपनी पहली ही फिल्म में शंकर जयकिसन ने यह कमाल कर दिखाया.
नौशाद साहब की बात हो रही है तब और एक वाकया याद आ गया. नौशाद साहब की एक तर्ज इन दोनों को बहुत अच्छी लगी थी. जवां है मुहब्बत हसीं है जमाना का असर इन दोनों पर इतना था कि हवा में ऊडता जाये मेरा लाल दुपट्टा गीत में उस का प्रभाव महेसूस होता है. ठीक इसी तरह हुश्नलाल भगतराम के गी तेरे नैनों ने जादु किया का प्रभाव जिया बेकरार है आयी बहार है... गीत में नजर आता है. यद्दपि शंकर जयकिसन ने अद्दल जैसी नक्कल नहीं की है. तर्ज को अपनी अदा में प्रस्तुत किया है.
और हां, बरसात के सभी नौ गानें लताजी की आवाजमे प्रस्तुत हुए. बरसात से ही पार्श्वगायक-गायिका का नाम रेकोर्ड पर लीखना शुरु हुआ. उस से पहले कथानायिका या नायक का नाम रेकोर्ड पर छपता था. राज कपूर और शंकर जयकिसनने लताजी का नाम फिल्म मे परदे पर और रेकोर्ड पर प्रस्तुत किया था. इस तरह शंकर जयकिसन की कारकिर्द का आरंभ कलात्मक विस्फोट के साथ हुआ.
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