शंकर जयकिसन-1
देश-परदेश की अनेक भाषाओं में जिन के बारे में बेसुमार लीखा गया है और जिन के संगीत के करोडों चाहनेवाले हैं एैसे संगीतकारों के बारे में लीखना अपने आप में एक बहुत बडा चेलेंज है. इसी कारणवश शंकर जयकिसन के बारे में लिखते वक्त दिल में थोडी झिझक थी और थोडा सा डर भी था.
देश-परदेश की अनेक भाषाओं में जिन के बारे में बेसुमार लीखा गया है और जिन के संगीत के करोडों चाहनेवाले हैं एैसे संगीतकारों के बारे में लीखना अपने आप में एक बहुत बडा चेलेंज है. इसी कारणवश शंकर जयकिसन के बारे में लिखते वक्त दिल में थोडी झिझक थी और थोडा सा डर भी था.
क्यों कि इन दोनों के बारे में मुझ से ज्यादा जाननेवाले संगीत प्रेमी हो सकते हैं. फिर भी मेरे स्तंभ के पाठकों को दिया हुआ वादा नीभाते हुए मैं यह श्रेणी शुरु करने जा रहा हुं. मुमकीन है मैंने प्रस्तुत की हुयी बहुत सी बातें संगीतप्रेमी पहलेसे जानते होंगे. हो सकता है, मेरी प्रस्तुति में कोई बात बिलकुल ही नयी होंगी. अपने पाठकों को नमस्कार करते हुए मैं यह श्रेणी शुरु करने जा रहा हुं.
शंकर जयकिसन की बातों का आरंभ जरा हट के करने का ईरादा है. यहां जो बात कहने जा रहा हुं वह मेरे खयाल में अब तक किसीने प्रस्तुत नहीं की है. मुझे यह सब बातें बताने वाले लोगो में जिन का बहुत बडा योगदान रहा है उन सब का शुक्रिया अदा करना चाहुंगा.
शंकर जयकिसन की बातों का आरंभ जरा हट के करने का ईरादा है. यहां जो बात कहने जा रहा हुं वह मेरे खयाल में अब तक किसीने प्रस्तुत नहीं की है. मुझे यह सब बातें बताने वाले लोगो में जिन का बहुत बडा योगदान रहा है उन सब का शुक्रिया अदा करना चाहुंगा.
संगीतकार कल्याणजी (आनंदजी), दिलीप धोळकिया, एकाधिक संगीतकारों के साथ सहायक रह चूके सरोद और मेंडोलीन वादक किशोर देसाइ, सिनियर तालवाद्यकार बरजोर लोर्ड और राज कपूर के स्क्रीप्ट राईटर एवम् प्रचार अधिकारी वी पी साठेजीने मुझे बहुत सी जानकारी दी थी.
बम्बई के जिस सांध्य दैनिक में मेरी पत्रकारिता का आरंभ हुआ वह जन्मभूमि के मेरे साथी प्रखर कवि-गीतकार वेणीभाई पुरोहित और बिलावल के उपनाम से संगीत विषयक लिखने वाले गीतकार पत्रकार जितुभाई महेता का भी शुक्रगुजार हुं. शंकर जयकिसन श्रेणी में अब आप जो पढने जा रहे हैं वह जानकारी इन सभी ने मुझे दी है. और भी कई लोगों ने मुझे सहायता की है. उन सभी का भी यहां शुक्रिया अदा करता हुं.
अब आप जो पढने जा रहे हैं वह शंकर जयकिसन के शब्दों में प्रस्तुत करने का मेरा प्रयास है. मैंने जो कुछ जानकारी प्राप्त की उसे सिर्फ याददास्त के सहारे आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हुं. अब संगीतकारों की जुबानी बात शुरु कर रहा हुं, जो इन दोनों ने अपने नजदीकि लोगों के साथ की थी.
'राज साहब ने हमें बरसात फिल्म की जिम्मेदारी सौंपी उन दिनों हमारे मन में सांप्रत परिस्थिति के बारे में विचारों की आपाधापी चल रही थी. अलबत्ता, उस के पीछे पापाजी (अर्थात्त पृथ्वीराज कपूर) के साथ हुयी बातों का असर था. पापाजी के विचार और उन के नाटकों का भी हमारे दिलोदिमाग पर गहरा असर था.
आझादी के प्रातःकाल में ही देश का बंटवारा हो गया. तब हिंसा का जो तांडव खेला गया उस में लाखो लोगों का खून बहा. हर ईन्सान के जेहन में असुर पैदा हो गया था और भीषण नरसंहार हुआ था. असंख्य औरतों की अस्मत लूंटी गयी थी. लाखों लोग बेघर हो गये थे. यह सब जख्म अभी हरे थे. हवा में खून-मांस की बदबू फैली हुयी थी. हम सोचते थे कि इस बीच ऊभर रही पीढी के बच्चों में अगर नया उत्साह भरना है, उन के दिल में जीवन के प्रति आशावाद प्रकट करना है तो हमारे स्ंगीत में नयी ऊमंग, नये तराने, नया खमीर, नयी चेतना भरनी होगी. ऐसा संगीत सर्जन करना पडेगा जिस को सुनते ही बच्चे थिरकने लगे, नाचने लगे.
'हमारी इस कल्पना को साकार करने का मौका राजजीने हमें बरसात में दिया. एक दिन हम गुजराती गरबा के हींच ताल के बारे में बातें कर रहे थे कि हींच में कितने आयाम हैं सारी बातें आत्मीय माहौल में हो रही थी. शंकरजी अचानक बोले, ताक् धीना धीन्... राज साहब ऊछल पडे और बोले इस बोल को अपने किसी गीत में प्रविष्ट कर दो. और एक नये गीत ने जन्म लिया. बरसात में हम से मिले तुम सजन तुम से मिले हम बरसात में, ताक् धीना धीन्... मझे की बात यह हुयी कि इस बोल को हमने किसी तालवाद्य पे नहीं कोरस (समूहगान) के रूप में प्रस्तुत किये....'
इस पूरे परिच्छेद को पढिये फिर से. बंटवारा, बलात्कार, आसुरी हिंसा और कत्लेआम और खून टपकते जख्म- इन सभी को भूला दे ऐसा संगीत शंकर जयकिसन को तैयार करना था. उन्हों ने फिल्म संगीत में आपादमस्तक जबरदस्त परिवर्तन कर दिखाया और एक ऐसे संगीत को जन्म दिया जो आज तक सारी दुनिया में गूंज रहा है.
पहला बोलपट (टॉकी) आलम आरा के समय से अर्थात् 1931-32 से सन '46 तक जिस प्रकार का संगीत सुनने में आया उस से बढकर इन दोनों ने एैसा संगीत प्रस्तुत किया जो आनेवाली सभी पीढीयों के संगीतप्रेमीओं को अभिभूत कर दे. फिल्म संगीत का स्वर्ण युग इन दोनेां से शुरु हुआ ऐसा कहनें में कोइ क्षति नहीं होगी.
यद्यपि इस कार्य में उन्हें, अपने म्युझिक एरेंजर सेबास्टियन, एन्थनी गोन्साल्विस, फ्रेन्की फरनान्डिस, दत्ताराम, वी (विस्तास्प) बलसारा, लाला, सत्तार, वान शिप्ले, जयराम आचार्य, रईस खान, एनोक डेनियल इत्यादि साजिंदों ने भी भरपुर सहयोग दिया.
यूं समजिये के फिल्म संगीत में इन दोनेां ने क्रान्ति कर डाली, उन दिनों शायद उन्हें कल्पना भी नही थी कि हमारा संगीत पूरी दुनिया को हीला के रख देगा, आनेवाली पीढी के संगीतप्रेमी उन को जी भर के दाद देंगेय जी हां, अब हम संगीत के इस दो जादुगरों की बात शुरु करने जा रहे हैं. तैयार हो जाइये, इस श्रेणी को पढने और अपना प्रतिभाव देनें... हो सकता है, इस धारावाहिक में थोडी सी बातें आप जानते होंगे, थोडी सी बातें बिलकुल नयी होंगी. बामुलाहिजा होशियार, संगीत के शहनशाह शंकर जयकिसन आ रहे हैं...
'राज साहब ने हमें बरसात फिल्म की जिम्मेदारी सौंपी उन दिनों हमारे मन में सांप्रत परिस्थिति के बारे में विचारों की आपाधापी चल रही थी. अलबत्ता, उस के पीछे पापाजी (अर्थात्त पृथ्वीराज कपूर) के साथ हुयी बातों का असर था. पापाजी के विचार और उन के नाटकों का भी हमारे दिलोदिमाग पर गहरा असर था.
आझादी के प्रातःकाल में ही देश का बंटवारा हो गया. तब हिंसा का जो तांडव खेला गया उस में लाखो लोगों का खून बहा. हर ईन्सान के जेहन में असुर पैदा हो गया था और भीषण नरसंहार हुआ था. असंख्य औरतों की अस्मत लूंटी गयी थी. लाखों लोग बेघर हो गये थे. यह सब जख्म अभी हरे थे. हवा में खून-मांस की बदबू फैली हुयी थी. हम सोचते थे कि इस बीच ऊभर रही पीढी के बच्चों में अगर नया उत्साह भरना है, उन के दिल में जीवन के प्रति आशावाद प्रकट करना है तो हमारे स्ंगीत में नयी ऊमंग, नये तराने, नया खमीर, नयी चेतना भरनी होगी. ऐसा संगीत सर्जन करना पडेगा जिस को सुनते ही बच्चे थिरकने लगे, नाचने लगे.
'हमारी इस कल्पना को साकार करने का मौका राजजीने हमें बरसात में दिया. एक दिन हम गुजराती गरबा के हींच ताल के बारे में बातें कर रहे थे कि हींच में कितने आयाम हैं सारी बातें आत्मीय माहौल में हो रही थी. शंकरजी अचानक बोले, ताक् धीना धीन्... राज साहब ऊछल पडे और बोले इस बोल को अपने किसी गीत में प्रविष्ट कर दो. और एक नये गीत ने जन्म लिया. बरसात में हम से मिले तुम सजन तुम से मिले हम बरसात में, ताक् धीना धीन्... मझे की बात यह हुयी कि इस बोल को हमने किसी तालवाद्य पे नहीं कोरस (समूहगान) के रूप में प्रस्तुत किये....'
इस पूरे परिच्छेद को पढिये फिर से. बंटवारा, बलात्कार, आसुरी हिंसा और कत्लेआम और खून टपकते जख्म- इन सभी को भूला दे ऐसा संगीत शंकर जयकिसन को तैयार करना था. उन्हों ने फिल्म संगीत में आपादमस्तक जबरदस्त परिवर्तन कर दिखाया और एक ऐसे संगीत को जन्म दिया जो आज तक सारी दुनिया में गूंज रहा है.
पहला बोलपट (टॉकी) आलम आरा के समय से अर्थात् 1931-32 से सन '46 तक जिस प्रकार का संगीत सुनने में आया उस से बढकर इन दोनों ने एैसा संगीत प्रस्तुत किया जो आनेवाली सभी पीढीयों के संगीतप्रेमीओं को अभिभूत कर दे. फिल्म संगीत का स्वर्ण युग इन दोनेां से शुरु हुआ ऐसा कहनें में कोइ क्षति नहीं होगी.
यद्यपि इस कार्य में उन्हें, अपने म्युझिक एरेंजर सेबास्टियन, एन्थनी गोन्साल्विस, फ्रेन्की फरनान्डिस, दत्ताराम, वी (विस्तास्प) बलसारा, लाला, सत्तार, वान शिप्ले, जयराम आचार्य, रईस खान, एनोक डेनियल इत्यादि साजिंदों ने भी भरपुर सहयोग दिया.
यूं समजिये के फिल्म संगीत में इन दोनेां ने क्रान्ति कर डाली, उन दिनों शायद उन्हें कल्पना भी नही थी कि हमारा संगीत पूरी दुनिया को हीला के रख देगा, आनेवाली पीढी के संगीतप्रेमी उन को जी भर के दाद देंगेय जी हां, अब हम संगीत के इस दो जादुगरों की बात शुरु करने जा रहे हैं. तैयार हो जाइये, इस श्रेणी को पढने और अपना प्रतिभाव देनें... हो सकता है, इस धारावाहिक में थोडी सी बातें आप जानते होंगे, थोडी सी बातें बिलकुल नयी होंगी. बामुलाहिजा होशियार, संगीत के शहनशाह शंकर जयकिसन आ रहे हैं...
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